Monday 9 November 2015

न लिख दूँ कुछ कि फिर अफ़सोस हो
कलम काग़ज मेरे सब छीन लो

सिपाही जंग में माहिर तो है
अदू पर वार का निर्णय तो हो

अब तो ये जान

अब तो ये जान ले ले कोई,
दिला दे निजात जीवन से कोई

सेक लग सकता है ! सावधान
ज़ेहन में आग लगी है कोई

सर दर्द बदन दर्द बहुत हुआ,
अब तो गला ही दबा दे कोई

इम्तिहान बस, और मादा नहीं
अब तो मुआफ़ ही न कर दे कोई

Tuesday 1 September 2015

लिखता रहा

लिखता रहा दिल का कहा, जब भी ह्रदय विचलित हुआ
फिर भी शायद सब से बेहतर काम चुप रह के किया

गुस्सा जो निकला, ज़हर का प्याला समझ के पी गया
प्यास फिर भी न बुझी तो पानी में कंकड़ जड़ दिया

Friday 28 August 2015

अन्दरूनी कश्मकश

अन्दरूनी कश्मकश में हाल ऐसा है कि 'जुर्अत'
सर झुकाओ तो ही पाओ जान की अब अमान बस

सुर्ख़ है मस्तक धरा का खून की होली के बाद
भगवे हरे के दरमियाँ चाहत सफ़ेदी की है बस

जहां से उठा ले

जहां से उठा ले या गोदी उठा ले
महर होगी मौला मेरे ग़म उठा ले


Sunday 16 August 2015


ज़िन्दगी की तीन पत्ती

ज़िन्दगी की तीन पत्ती आओ खेलें
'ऊँ साईं राम' की बूटी डालें

खेल में अब हार क्या और जीत कैसी
जिसने जैसी बाज़ी खेली उसकी वैसी

जीतनी है जंग तो पत्ते लगाना सीख
पाल ले कोई हुनर, न देगा कोई भीख

कैसा अजब ये रस्ता है

कैसा अजब ये रस्ता है
मिल जाए तो सस्ता है

चलने वाले को तरस्ता है
सुनते हैं हर जगह वो बसता है

खुद को खोना पड़ता है
खो जाओ तो मिलता है
इंसान क्यों फिर दुनिया में फँसता है

जो चलता है वो हँसता है
रुकते ही शिकंजा कसता है

जन्नत का सज़ायाफ़्ता है
ख़ुदाओं से वाबस्ता है

Wednesday 24 June 2015

इस क़दर बेज़ार हैं

इस क़दर बेज़ार हैं इंसान से 'जुर्'अत'
ख़ुदाया अब मुझे अगले जनम इंसान मत करना

जानवर कर दे भले ही ख़्वार तू कर दे
गुज़ारिश है मुझे इंसान अब भगवान मत करना

जो माने इल्तिजा मेरी तो इक मामूली चाहत है
शजर कर दे या कर दे फूल, घर गुलदान मत करना

Tuesday 19 May 2015

ख़ुदी को कर ख़ुदा-हाफ़िज़

ख़ुदी को कर ख़ुदा-हाफ़िज़, मुहाफ़िज़ है ख़ुदा तेरा
पेश-ख़िद् मत जान कर, फिर ख़्वार हो या संगसार


Tuesday 5 May 2015

वक़्त है कम और काम बहुत है

वक़्त है कम और काम बहुत है
जीवन में जंजाल बहुत है

खुशियाँ तो खरीदी मण्डी में
जाने क्यों पर दाम बहुत है

ऊपर वाले नीचे आ
देख यहाँ पर धाम बहुत हैं

क्या मैं भी अब कर लूँ सौदा
अना का बिकना आम बहुत है

ज़ख़्म तो आप ही भर जाएंगे
वक़्त यहाँ बलवान बहुत है

नौकरशाही जान की दुश्मन
कहने को आराम बहुत है

झूठ को सच और सच को झूठ
बोलो तो फिर माल बहुत है

कह न देना दिल की बातें
दीवारों के कान बहुत हैं

हार के क्यों बैठूँ मैं, बताओ
अभी तो मुझ में जान बहुत है

मस्ती का सामान बहुत है
जीवन की अब शाम बहुत है

#जुर्अत

Sunday 26 April 2015

कुछ बात तो है। Kuchh baat to hai

कुछ बात तो है जो मचल रही है
ज़मीन करवट बदल रही है

खेले का अंतिम समय है लगता
ख़ुदाई ख़ुदा-न-ख़्वास्त जल रही है

कारवाँ मंज़िल पे पहुँचे न पहुँचे
क़यामत की आमद हर पल रही है

ख़ौफ़नाक मंज़र में मुर्दनी का आलम है
दिन तो गुज़ारा है, रात निकल रही है

ख़्वाहिशें दिलों में दफ़न न हो जाएं
ज़िंदगी है कि हाथों से फिसल रही है



Kuchh baat hai jo machal rahi hai
Zameen karwat badal rahi hai

Khele ka antim samay hai lagta
Khudaai Khuda-na-khwaasta jal rahi hai

Kaarwaa'n manzil pe pahunche na pahunche
Qayaamat ki aamad har pal rahi hai

Khaufnaak manzar mein murdanee ka aalam hai
Din to guzaara hai raat nikal rahi hai

Khwaahishein dilo'n mein dafan na ho jaayein
Zindagi hai ki haatho'n se fisal rahi hai


Sunday 12 April 2015

किस्मत

 हथेली पे छपी
लकीरों में छुपी
जो किस्मत है,

उंगलियाँ समेट कर
हथेली से मिलाकर
सँवरती है ।

#जुर्अत

Tuesday 17 March 2015

देखा जो दो घड़ी तो


देखा जो दो घड़ी तो, खुलने लगी परत
कोई तो मिलेगा कभी, बिन नक़ाब के

चलता हूँ तो गिरता हूँ नज़र में
रुकता हूँ तो गिरता हूँ नज़र से

यूँ तो है दमख़म ज़मीन-ओ-आसमां कम है
पर काटकर परवाज़ की तन्क़ीद हो 'जुर्अत'

सर को झुका के रखना

सर को झुका के रखना, अब मर्ज़ बन गया है
आवाज़ उठाना अब लाज़िम-सा हो गया है

पैसे के पीछे पागल दुनिया क्यों हो रही है
पाया तो खैर क्या है, ईमान औ' खो गया है

खुद को भी ज़्यादा मैं दिखता नहीं हूँ
पता नहीं कोई मुझ में क्या देखता है

वो नज़र क्या दिखाएगी मंज़र
कि जिस में दिल की बीनाई नहीं है

ज़ख़्म पर ज़हर

ज़ख़्म पर ज़हर का मलहम क्या लगा
रग-रग में आह, दर्द मचलने लगा

नासूर न हो जाए कहीं नफरतों का वायरस
'जुर्रत' मुहब्बतों का खेत जोतने लगा

Monday 26 January 2015

स्वार्थ की पताका

 स्वार्थ की पताका, हम सब के हाथ में है
निज हित से तिरंगे का, गर्दिश में सितारा है

जिस मिट्टी को पुरखों ने, माथे पे सजाया है
मिट्टी से अब ये रिश्ता, मिट्टी में मिल रहा है

टुकड़े तो सरज़मीं के, सदियों से हो रहे हैं
भाषा औ' धर्म में अब, बँटना न गवारा है

जम्हूरियत के जश्न में, मशगूल हुक़्मरान है
सियासती चश्मे में, हम हैं कि जहाँआरा है


Swaarth ki pataaka,  hum sab ke haath mein hai
Nijhit se tirange ka, gardish mein sitara hai

Jis mitti ko purkho'n ne, maathe pe sajaaya hai
Mitti se ab ye rishta, mitti mei'n mil raha hai

Tukde to sar-zamee'n ke, sadiyo'n se ho rahe hain
Bhasha au' dharm mei'n ab, batna na gawara hai

Jamhooriyat ke jashn mei'n, mashgool hukmraan hai
Siyasati chashme mei'n, hum hain ki jahaan'aara hai


Wednesday 21 January 2015

कन्धे पे ढो रहा हूँ

कन्धे पे ढो रहा हूँ सच के बेताल को
राजा तो हो गया हूँ बे-शक़ से कहने को

हसरतों की फ़ेहरिस्त, में और कुछ न लिक्खा
घर का सवाल है इक, बस चैन से रहने को

खेतों में उग गए हैं सड़कें व कारखाने
बाक़ी नहीं अब आँख में, आँसू भी और बहने को

तिनके जमा लिए हैं टूटी-सी शाख पर
दीवार बन गई है, फिर बाढ़ में बहने को

अर्ज़ी में इल्तजा है, 'जुर्रत' की ऐ ख़ुदा
कुछ रह गए हों ग़म तो, वो भी तू दे दे सहने को

Friday 2 January 2015

दो कदम आगे

दो कदम आगे चार कदम पीछे
अब ऐसा क्यों है कोई न पूछे

सवाल पे ही बवाल है
जवाब भला क्या सूझे

अल्लाह, यीशू  या भगवान
भूखा बेचारा किसे पूजे

दिल की बात ज़ुबां पे है
व्रत रक्खें या रक्खें रोज़े

क्या है मेरा क्या है तेरा
सब अपने हैं कोई न दूजे

मंगल तक जा पहुँचे हैं
कहीं कोई इंसान तो खोजे


Do kadam aage chaar kadam peeche
Ab aisa kyon hai koi na pooche

Sawaal pe hi bawaal hai
Jawaab bhala kya soojhe

Allah, Yeeshu ya Bhagwaan
Bhukha bechara kise pooje

Dil ki baat zubaa'n pe hai
Vrat rak'khein ya rak'khein roze

Kya hai tera kya hai mera
Sab apne hain koi na dooje

Mangal tak ja pahunche hain
Kahin koi insaan to khoje