Monday 6 October 2014

ग़ज़ल -16 आसानियाँ हैं नज़र में उसकी

आसानियाँ हैं नज़र में उसकी , कि मुश्किलों से जो बेखबर है
हार बैठा है जो दम अब , दवा दुआ भी सब बेअसर है


बाद मुद्दत के मुसलसल दिल का मंज़र रक़्स में है
रहनुमाई और रुस्वाई का आलम बेसबब है

अर्थ है जीवन का चलना , सिर्फ चलते रहना है
रुक गया जो राह-ए-मंज़िल दर-असल वो बेहुनर है


बेरुख़ी बे-इंतिहा है , बेकरारी बाहमी
आए हैं महफ़िल में मानो इस तरह कि बेतलब हैं


 है काम मुश्किल , चले गुज़ारा , अना को महफ़ूज़ , रख के चलना
झुके न सर जिस किसी के आगे , नज़र में सब की वो बेअदब है


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