Monday 6 October 2014

ग़ज़ल -16 आसानियाँ हैं नज़र में उसकी

आसानियाँ हैं नज़र में उसकी , कि मुश्किलों से जो बेखबर है
हार बैठा है जो दम अब , दवा दुआ भी सब बेअसर है


बाद मुद्दत के मुसलसल दिल का मंज़र रक़्स में है
रहनुमाई और रुस्वाई का आलम बेसबब है

अर्थ है जीवन का चलना , सिर्फ चलते रहना है
रुक गया जो राह-ए-मंज़िल दर-असल वो बेहुनर है


बेरुख़ी बे-इंतिहा है , बेकरारी बाहमी
आए हैं महफ़िल में मानो इस तरह कि बेतलब हैं


 है काम मुश्किल , चले गुज़ारा , अना को महफ़ूज़ , रख के चलना
झुके न सर जिस किसी के आगे , नज़र में सब की वो बेअदब है


Friday 3 October 2014

ग़ज़ल - 15 अपनी आँखों में कभी

अपनी आँखों में कभी नज़र को पढ़ के देखिए
अक़्स क्या उभरता है आईने की सोचिए

धब्बे क्या मिट सकेंगे दामन से खून के
सूरत तो धो के आ गए सीरत की सोचिए

क्या क्या करेंगे साफ इस गर्दिश के दौर में
दफ़्तर व रहगुज़र तो हुई दिल की भी सोचिए

दश्त-ए-ग़म की तीरगी , ज़ब्त-ए-ग़म का शरार
इंतख़ाब दुरुस्त कर , इंतिसाब की सोचिए

( दुख के जंगल का अँधेरा and चिंगारी of tolerance,
  Correct your choice and think abt surrender)

रावण के सर भी झुक गए इंसां के कर्म देखकर
किस की विजय हुई किस पर , इस की भी तो सोचिए



Apni aankho'n mein kabhi nazar ko padh ke dekhiye
Aks kya ubharta hai, aaine ki sochiye

Dhabbe kya mit sakenge daaman se khoon ke
Soorat to dho ke aa gaye seerat ki sochiye

Kya kya karenge saaf is gardish ke daur mein
Daftar va rahguzar to hui dil ki bhi sochiye

Dasht-e-gham ki teergi , zabt-e-gham ka sharaar
Intakhaab durust kar , intisaab ki sochiye

Raavan ke sar bhi jhuk gaye, insaa'n ke karm dekh kar
Kis ki vijay hui kis par , iss ki bhi to sochiye