Tuesday 2 September 2014

ग़ज़ल - 10 झुक गया सर शर्म से

झुक गया सर शर्म से और हो गई आँखें भी नम
 अक़्स मेरा देख कर ज़ालिम ज़माना डर गया

लक्ष्य सब का एक है, गाँधी से मतलब है यहाँ
बिकते ईमां देख कर मैं अपने अंदर मर गया

घुटता है दम अब तो मगर, जीना मुझे भी है यहाँ
भेड़ियों के बीच इक बकरी का बच्चा फँस गया


हाथ में पतवार है, तलवार में भी धार है
आया जो तूफान तो कश्ती में पानी भर गया

बद से बदतर हो रहा है, हाल अब इस ज़ख़्म का
मौत जब आनी है तो अब धड़ गया कि सर गया

1 comment:

  1. Awesome bhai.. maja aa gaya padh ke :)

    just a suggestion related to meter -
    pehle sher ki second like se "Jab" ko hata dijiye..

    aur second last sher me keep "Aaya Jo Toofaan".. remove "Hai"

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