Tuesday 4 February 2014

आँख

आँख दिखा न पाई ।

फूलों की खुशी पहचान न पाई ।

बारिश में भीगी पत्तियों की गपशप सुन न पाई ।

चाँद के e-mails पढ़ न पाई ।

बादलों की रूई को समेट न पाई ।

तारों की चादर को ओढ़ न पाई ।

नींद से दिल को उठा न पाई ।

...................दिल पर तो यूँ ही दोष धरते हैं

अाँख ही रास्ता दिखा न पाई ।

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